۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
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26 जुलाई 2023 - 14:22
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हौज़ा/ हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने 72 साथियों की कुर्बानियां पेश करके हक़ को और सच्चाई को बचाया,हुसैन को कर्बला के मार्ग में यज़ीद के सिपाहीयों ने घेर लिया, उस वक्त यज़ीद के सिपाही प्यासे थे ऐसे समय, हुसैन ने अपने पास का पानी यज़ीदी सिपाहीयों को पिलाकर मानवता को उजागर किया, और सत्त्याग्रह का उद्देश्य प्रकाशित किया

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक दुसरे के प्रति संवेदनशीलता की कमी जनसमुदाय को अपाहिज बना देती है, तो हमें बुराईयाँ चूभती नहीं जैसे हम ’झूठ’ नहीं बोलते, मगर ’झूठों’ का साथ भी देते है ।

हम जालिम नहीं है, मगर किसी जुल्म पर विरोध भी नहीं करते। हम बुराईयाँ पसन्द नहीं करते, मगर बुराईयाँ रोकने का प्रयास भी नहीं करते। जुल्म होता देखते हैं, मगर जालिम को रोकने की कोशिश भी नहीं करते। इसका मतलब किसी की मानवता बीमार है, तो किसी की मर चूकी है।

ऐसी स्थिती में बुराईयाँ रोकना अनिवार्य है, मगर अच्छाईयाँ निश्चित करेगा कौन? इस प्रश्न के उत्तर मे कुछ सवाल, जैसे, नर्सरी-KG मे पढनेवाले ’बच्चे’ सच क्यों बोलते है ? भूखे को रोटी देने से खुशी क्यों होती है? । कोई बुरा काम पहली बार करने में भय-घबराहट क्यों होती है ?

इन सवालों के जवाब इन्सान की बनावट (Creation) में छुपे हैं । ’मालिक’ (GDO) ने अपने कानून के मुताबीक, अपनी खूबीयों से इन्सान को सजाया और अपनी ’फितरत’ (नेचर) के अनुसार अच्छाईयाँ इन्सान के नेचर (प्रकृति) में-झमीर मे-आत्मा मे डालकर इन्सान को दुनिया मे भेजा है।

इसी कारण इन्सान को अच्छाईयाँ जानी-पहेचानी लगती हैं और बुराईयाँ अनजान लगती है। इसीलिये ’बच्चे’ झूठ नहीं बोलते, भूखे को रोटी देने से खुशी होती है और बुरा काम पहली बार करने में घबराहट होती है।

इस विवरण का निष्कर्ष यह है कि अच्छाईयां इन्सान को जन्म के साथ मिली है, उसीका नाम ‘मानवता’ है, और सभी धर्म का अविभाज्य अंग है, मतलब मानवता के बगैर कोई भी धर्म अपूर्ण है-अधूरा है।

अब, यदि किसी भी धार्मिक व्यक्ति के पास ’मानवता’ नहीं तो वह धार्मिक नही बल्की अधर्मी है-बहेरूपिया है, ऐसा व्यक्ति जनसमुदाय को अपाहिज बना देता है, संवेदनशीलता नही रहेती और मानवता दुर्बल हो जाती है, मर भी जाती है।

याद रहे। हर व्यक्ति जनसमुदाय के प्रति जिम्मेदार है । ‘झूठ‘ सारी बुराईयों को जन्म देती है। जब बुराईयाँ फैलती है तो अन्याय भी बढ़ता है। अन्याय का सबसे बूरा और भयावह रूप न्याय का दिखावा है।

जो स्थिती, आज दुनिया में हर जगह है, वही स्थिती 1343 वर्ष पूर्व (इ.स. 680) मे अरब साम्राज्य की थी। यूरोप (रोम) से चीन तक, और रशिया से आफ्रीका तक, आधी दुनिया पर शासन करनेवाला अरब साम्राज्य का शासक ’यज़ीद जालिम और तानाशाह था। ’जूठ’ के बलबूते पर उसने स्वयं को मुस्लिमों का तथाकथित खलीफा घोषित किया, तो जनताने प्रथम विरोध किया

लेकीन यज़ीद के भय और धन की लालच में बहुतांश लोगोने खलीफा मान लिया, तो कुछ लोगों ने नही माना वो यज़ीद के भय से भूमिगत हो गये, मगर हुसैन ने यज़ीद को ‘खलीफा’ नही माना और साफ शब्दों में नकार दिया और यज़ीदी शासन का विरोध जारी भी रखा। यज़ीद के शासन की धार्मिक-सामाजिक और राजकीय व्यवस्था के विषय मे इतना कहना पर्याप्त है कि मानविय मुल्यों की ”धज्जियां उड रही थी।

’सच’ की उपेक्षा और झूठे परीबलो को प्रोत्साहित किया जाता था। मालदारो को जीने का हक था, उनके लिये कोई कानून नहीं था, जब की दुर्बल-गरीबों की अपने अस्तित्व के लिये चीखें उठती थी उसे खामोश कर दिया जाता था ।

यज़ीद के शासन मे मुस्लिम, क्रिश्चन, ज्यु और अन्य संप्रदाय के लोग भी थे, मगर बहुसंख्य मे मुस्लिम थे। मुस्लिम नमाज़, रोजा और हज भी करते थे, और अन्य अल्पसंख्यक भी अपनी प्रार्थनाघरो में प्रार्थना करते थे। मगर झूठ-अन्याय-और बुराईयाँ उनको चूभती नहीं थी,

क्योंकि धर्म केवल औपचारिकता तक सिमीत रह गया था । यज़ीद झूठा, अधर्मी और बहरुपिया था और यज़ीद की नितीयों के कारण जनसमुदाय में बुराईयां सामन्य हो गयी थी ।

सभी संप्रदाय के लोग असंवेदनशील बन गये थे, मानवता मर चुकी थी । ऐसी भयावह स्थिती मे यज़ीदी शासन का विरोध करने की जिम्मेदारी सबकी थी, मगर यज़ीद का भय और धन की लालच मे लोग जिम्मेदारी से भाग रहे थे। किन्तु हुसैन ने जनसमुदाय के प्रति जिम्मेदारी उठाई और 72 साथियों के साथ करबला मे सत्याग्रह शुरू किया ।

हुसैन को करबला के मार्ग में यज़ीद के सिपाहीयों ने घेर लिया, उस वक्त यज़ीद के सिपाही प्यासे थे ऐसे समय, हुसैन ने अपने पास का पानी यज़ीदी सिपाहीयों को पिलाकर मानवता को उजागर किया, और सत्त्याग्रह का उद्देश्य प्रकाशित किया ।

मुस्लिम शासक यज़ीद की धार्मिक-सामाजिक और राजकीय नितीयोंके विरोध में हुसैन ने सत्याग्रह करके स्वयं (अपने) को बिनसंप्रदायवादी होने का प्रमाण दिया, क्योंकि यज़ीद के साम्राज्य मे, मुस्लिम के व्यतिरिक्त यहूदी, इसाई और अन्य अल्पसंख्यक संप्रदाय का समुदाय भी था।

प्रोपेगंडा (मीडिया) यज़ीद के साथ था, तराने उसीके गाये जाते थे, सत्ता-सेना सब कुछ उसके साथ थी। यज़ीद के जुल्म की भीषणता और बुराईयों की उग्रता, हुसैन के मिजाज को, हुसैन की सोच को नहीं बदल सकी, बल्की करबला में हुसैन का सत्याग्रह संयम और वीरता से जारी रहा।

मानवीय मुल्यों की रक्षा के लिये सेना नहीं बल्की हुसैन ने ऐसे 72 साथी लिये जिनके किरदार- चरित्र पर कोई धब्बा नहीं था, और ना किसी यज़ीदी सिपाही ने उनसे कहा, की तुमको बुराई करते हमने देखा है, ऐसे चरित्रवान 72 साथीयों में 18 सदस्य हुसैन के परिवार के थे । यज़ीद ने खाने-की रसद और जलाशय से पानी लाने के मार्ग बंद कर दिये।

फिर भी, तीन दिन भूखे-प्यासे साथी और हुसैन के परिवार के छोटे बच्चों का संयम नही तूटा। यज़ीदी सेना ने हुसैन के पड़ाव पर हमला कर दिया, हुसैन के साथी, परीवार के सदस्य प्रतिकार करते शहीद हो गये। हुसैन  अंत तक यज़ीदी सेना का प्रतिकार करते शहीद हो गये । इमाम हुसैन की शहादत का प्रभाव दुनिया पर छा गया, लोगो मे जागृति आई, लोग निर्भय हो गये, अन्याय और बुराईयों के विरोध में आवाजे उठी ।

यज़ीदी शासन के कूफा-मक्का-मदीना-बसरा इत्यादी प्रांत आझाद हो गये। स्वतंत्रता के नये मुल्यांकन से विश्वभर मे क्रांती आई, बहुतसे राष्ट्र स्वतंत्र हुये। लोकमान्य तिलकजी ने कहा “हुसैन विश्व के पहले सत्त्याग्रही है” ।

हुसैन का सत्त्याग्रह उस वक्त तक के लिये सिमीत नही था और केवल करबला तक मर्यादित नही था बल्की जनसमुदाय में मानवता, सामाजिक न्याय और मानवीय आझादी की चेतना जगाने हुसैन का सोचा-समझा अभियान था । हुसैन के सत्त्याग्रह की विचारधारा और कार्यप्रणाली में सच्चाई की अनुभूती होती है ।

लोगों के प्रति इमाम हुसैन के दर्द को, मानवता ने अपने हृदय में सुरक्षित कर लिया,

लेखक : रमज़ान हुसैन

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